सरकार ने कहा तुम्हारी पत्नी अब नही रही मुआवजा ले लो लेकिन वह ढूंढता रहा आखिर लीला मिल गई.इस लव स्टोरी पर अब बनेगी फ़िल्म

उम्मीद,विश्वास

यकीन ऐसे कई शब्दों को सच साबित करता है प्रेम.उम्मीद के दम पर ही बंजर को हरियाली देने का वादा करता है प्रेम.ये प्रेम ही है जिसने दुनिया को अभी तक रहने लायक बनाया है. जब कुछ नहीं था तब भी प्रेम था और उक्त लिखी गई बातों को साबित करने के लिए दुनिया के पास तमाम कहानियां.ऐसी ही एक कहानी सोशल मीडिया पर इन दिनों लोगों के दिलों को छू रही है.यू तो ये कहानी कई साल पुरानी है.लेकिन सोशल मीडिया ने इस प्रेम कहानी के पन्नों को एक बार फिर से खोल दिया है.

पति पत्नी का रिश्ता

विश्वास पर टिका होता है. इसी विश्वास,प्रेम और उम्मीद से भरी कहानी है राजस्थान के विजेंदर सिंह राठौर व उनकी पत्नी लीला की. विजेंदर अपनी पत्नी लीला और अपने बच्चों को साथ ले कर उत्तराखंड चार धाम की यात्रा के लिए आए थे.यहां वो उसी टूर एंड ट्रेवल कंपनी की बस से आए थे जिसमें वह टूर ऑपरेटर की नौकरी करते थे.

उन्हें क्या पता था कि

इस यात्रा के दौरान उनके जीवन में अंधेरा छाने वाला है.उनकी इसी यात्रा के दौरान उत्तराखंड भीषण बाढ़ की चपेट में आया था.जून 2013 में बाढ़ अपने साथ विजेंदर की लीला और उसके जीवन की खुशियों को भी बहा कर ले गयी.विजेंदर ने बहुत हाथ पैर मारे मगर लीला का कहीं पता ना चला. और तो और सरकारी फाइलों में भी लीला मृत घोषित कर दी गयी.बाढ़ में मरने वाले लोगों के लिए जो रकम सरकार देती है वो भी परिवार को मिल गयी. परिवार को 9 लाख का मुआवजा मिला.इतना कुछ होने के बाद भी विजेंदर का मन ये मानने को तैयार नहीं था कि उसकी लीला अब इस दुनिया में नहीं है.सबने बहुत समझाया मगर विजेंदर नहीं माना और फैसला किया कि वो लीला को खोजने बाहर जाएगा.

विजेंदर ने

अपने बच्चों को घर छोड़ा और निकल गया लीला को खोजने.वो उत्तराखंड के हर गांव हर शहर में लीला की तस्वीर लेकर घूमा. वो हर किसी को उसकी तस्वीर दिखाता और पूछता कि आपने इसे कहीं देखा है. कितना पागल था ना विजेंदर ऐसे भला कोई मिलता है क्या.इस स्थिति में अधिकतर समझदार लोग खुद को समझा कर घर लौट जाते मगर विजेंदर समझदार नहीं बल्कि प्रेमी था.

इस विश्वास से भरा हुआ प्रेमी कि उसकी लीला ज़िंदा है.19 महीनों बाद जनवरी 2015 को विजेंदर का विश्वास अपनी सच्चाई पर तब मुस्कुरा उठा जब उसने लीला को खोज निकाला. लीला उत्तराखंड के गंगोली गांव में भीख मांगती हुई मिली.उसकी मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि वो विजेंदर को भी पहचान नहीं पा रही थी.विजेंदर उसे घर लाया और परिवार की मदद से लीला को ठीक करना शुरू कर दिया.

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