आज दुनियाभर में
प्यार का उत्सव मनाया जा रहा है। प्रेमी जोड़े एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार कर रहे हैं। इस बीच जानिए राजस्थान की एक ऐसी जगह के बारे में जो भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित है और मोहब्बत की मिसाल है। यहां साल मोहब्ब्त का मेला लगता है। बेपनाह मोहब्बत की निशानी इस जगह पर आकर प्रेमी जोड़ों की रूह सुकून मिलता है।
वैलेंटाइन डे के मौके
पर हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सरहदी जिले श्रीगंगानगर स्थित लैला मजनूं की। यूं तो यह यूं तो लैला मजनूं की यह मजार एक सामान्य मजार की तरह ही है, मगर हर साल जब सावन माह में ‘मोहब्बत का मेला’ लगता है तब यह प्रेमी जोड़ों के लिए पसंदीदा जगहों में से एक बन जाता है। इस मजार से विश्व प्रसिद्ध प्रेमी लैला मजनूं की कई यादें जुड़ी हुई हैं।
कहते हैं कि लैला मजनूं ने
अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हे इसी जगह पर बिताए थे। दोनों ने तड़प तड़पकर यहीं पर दम तोड़ दिया था। उन्हीं की याद में यह मजार बनाई गई थी। सैकड़ों साल पुरानी अमर प्रेम कहानी को समेटे हुए यह मजार प्रेमी जोड़ों का तीर्थस्थल भी कहलाती है। बता दें कि राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की अनूपगढ़ तहसील मुख्यालय से पश्चिम की ओर 10 किलोमीटर गांव बिंजौर में लैला मजनूं की मजार स्थित है। मजार के महज दो किलोमीटर दूर ही भारत-पाकिस्तान सीमा है। यह बॉर्डर इलाका होने के कारण यहां पर सीमा सुरक्षा बल का भी कड़ा पहरा रहता है।लैला मजनूं के सम्मान में भारतीय सेना ने मजनूं पोस्ट भी बना रखी है। लैला मजनूं की इस मजार से एक खास बात जुड़ी हुई है। वो यह है कि हर साल इस इलाके में घग्घर नदी का पानी चारों ओर फैल जाता है, मगर कभी मजार तक नहीं पहुंच पाया।
मेला कमेटी की
मानें लैला मजनूं की मजार पर लगभग 65 साल से मेल लग रहा है। पहले मेले की अवधि एक दिन की हुआ करती थी, मगर प्रेमी जोड़े के उत्साह को देखते हुए मेले की अवधि पांच दिन की कर दी। मजार में दो समाधि बनी हुई है। पूर्व में बड़ी समाधि मजनूं की और पश्चिम में छोटी समाधि लैला की है। करीब छह बीघा में फैले मेला स्थल को सरकार लाखों रुपए खर्च करके पर्यटन स्थल के रूप में भी खर्च कर रही है। जानिए कौन थे लैला-मजनूं Laila Majnu की कहानी यह उस समय की काहानी है जब सिंध में अरबपति शाह अमारी के बेटे कैस (मजनूं) और लैला नाम की लड़की को एक दूसरे से प्यार हो गया और जिसका अंत मौत के साथ हुआ। उनके अमर प्रेम के चलते ही लोगों ने दोनों के नाम के बीच में ‘और’ लगाना मुनासिब नहीं समझा और दोनों हमेशा के लिए ‘लैला-मजनूं’ के रूप में ही अमर हो गए। लोगों का मानना हैं कि लैला-मजनूं सिंध प्रांत के रहने वाले थे। उनकी मौत यहीं पाकिस्तान बॉर्डर से महज 2 किलोमीटर दूर राजस्थान के गंगानगर जिले के अनूपगढ़ में हुई थी। कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने क्रूर तरीके से मजनूं की हत्या कर दी।
एक कहानी यह भी कि मजनूं की हत्या का लैला को पता चला तो वह मजनूं के शव के पास पहुंची और जान दे दी। कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर-दर भटकने के बाद, वे यहां तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि परिवार वालों और समाज से दुखी होकर उन्होंने एक साथ आत्महत्या कर ली।